मेरे दोस्तों , "अबूझ सी उदासी जब मन पर छायी हो तो शामें अक्सर हृदय के निकट लगती हैं 💔💔"
मेरी यह कविता उन्ही सभी दोस्तों एवं उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होंने मुझे यह कविता लिखने के लिए प्रेरित किया और उन सभी के लिए भी जो लोग अक्सर अपनी तन्हाई के आलम में खुद को डूबे पाते हैं। 🙏🙏
मेरी यह कविता उन्ही सभी दोस्तों एवं उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होंने मुझे यह कविता लिखने के लिए प्रेरित किया और उन सभी के लिए भी जो लोग अक्सर अपनी तन्हाई के आलम में खुद को डूबे पाते हैं। 🙏🙏
ज़ज्बाति शाम🖊
जज़्बाती आँखों में
गहराती हुई शाम है
और उचटे हुए मन पर अबूझ-सी उदासी।
कच्ची सी एक सड़क है,
धान खेतों से होकर गुजरती हुई
दूर तक चली जाती है —
पैना-सा एक मोड़ है
और भटके हुऐ दो विहग।
गहराती हुई शाम है,
घनी पसरी हुई एक खामोशी,
दूर कहीं बजती हुई बंसी के स्वर में
आहिस्ता-आहिस्ता पलाश के फूल
फूट रहे हैं ...
और असंख्य तारों को कतारबद्ध
गिनते हुए बैठे हैं हम दोनों।
-आयुष सिंह 🙏😊